एक बड़े दानी राजा थे. वे प्रतिदिन एक निश्चित समय पे दान दिया करते थे. उन्हें घोड़ों का बड़ा शौक था. एक दिन वे दान की प्रक्रिया समाप्त कर शिकार को निकलने ही वाले थे की एक साधू जो दिन में एक ही व्यक्ति से सिर्फ एक बार ही भीक्षा लेते थे, राजा के सामने आ खड़े हुए और भीक्षा मांगने लगे।
राजा बोले दान का आज का समय तो समाप्त हो चूका है अतः आप कल आएं, लेकिन साधू बोले - राजन मैं दिन में सिर्फ एक बार ही भीक्षा मांगता हूँ अतः आप मुझे कुछ भी भेक्षा में देकर कृपा करें। साधू की हठधर्मिता देखकर राजा को गुस्सा आ गया और उन्होंने जिस घोड़े पे बैठ कर शिकार को जाने वाले थे उसकी लीद उठाकर साधु महाराज की झोली में डाल दी. साधू वो ग्रहण कर चुपचाप वहां से चले गए.
इस बात को हुए वर्षों बीत गए एक दिन राजा शिकार करते करते जंगल में आपने सैनिकों से बिछुड़ गया. तब उसने देखा की जंगल में एक झोपडी है और उसके आगे घोड़े की लीद का बहुत बड़ा ढेर पड़ा है. घोड़ों के शौक़ीन राजा ने जब यहाँ देखा तो सोचा की इतनी लीद है तो जरूर इस झोपडी में बहुत सारे घोड़े भी होंगे। वह झोपडी के अंदर गया लेकिन वहां सिर्फ एक साधू ध्यानं में लीन मिले। राजा ने पूछा घोड़े कहाँ हैं, साधू बोले- घोड़े तो नहीं हैं मेरे पास. राजा आश्चर्यचकित हुआ पूछा- तो इतनी लीद कहाँ से आयी आपके पास. साधू बोले- राजन, आपने मुझे पहचाना नहीं, ये तो मुझे आपने ही मुझे भीक्षा में दी थी.
राजा तो वर्षों पुरानी बात याद हुई, वह लज्जित हो गया लेकिन आश्चर्य से पूछा- महात्मन, मैंने तो थोड़ी सी ही लीद दी थी? साधू बोले- राजन, जो आप दूसरों को देते हैं वह बढ़कर आपको ही वापस मिलता है, वही वर्षों में बढ़कर इतना हो गया है. राजा को अपनी गलती का ज्ञान हुआ और वह साधू महाराज से प्रायश्चित का उपाय पूछने लगा. साधू बोले- राजन, जो आपने दिया है वो तो आपको मिलेगा ही. अतः आप कुछ ऐसा करें की लोग आपको भला बुरा कहें आपको गलियां दें.
राजा बड़ा दानी और प्रतापी था लाख कोशिश करने के बाद भी कोई राजा के बारे में गलत बोलने को तैयार न था. बहुत प्रयासों के बाद उसकी प्रजा उसकी बुराई करने लगाई तो लीद का ढेर भी काम होने लगा. अंत में थोड़ी से लीद बच गयी जो अथक प्रयासों पे भी ज्यों की त्यों बानी रही, तब साधू ने कहा- राजन, यह आपका मूल है जो दूसरे नहीं हर सकते, ये आपके गुरुदेव ही हर सकते हैं अतः आप आपने गुरु के साथ कुछ ऐसा करें की वो आपको भला बुरा कहें।
राजा अपने गुरु के सामने बहुत कु-प्रयत्न किये लेकिन ज्ञानी गुरु हमेशा उसको समझा के वापस भेज देते थे.
अंत में राजा को हार जान कर गुरु बोले- राजन, आप अपना गन्दा मुझे खिलने की कोशिश कर रहे हैं उसे तो आपको ही खाना पड़ेगा। जो आप दूसरों को देंगे उसका कई गुना आपको वापस मिलेगा। अच्छा देंगे कई गुना अच्छा मिलेगा, बुरा देंगे कई गुना बुरा वापस मिलेगा।
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राजा बोले दान का आज का समय तो समाप्त हो चूका है अतः आप कल आएं, लेकिन साधू बोले - राजन मैं दिन में सिर्फ एक बार ही भीक्षा मांगता हूँ अतः आप मुझे कुछ भी भेक्षा में देकर कृपा करें। साधू की हठधर्मिता देखकर राजा को गुस्सा आ गया और उन्होंने जिस घोड़े पे बैठ कर शिकार को जाने वाले थे उसकी लीद उठाकर साधु महाराज की झोली में डाल दी. साधू वो ग्रहण कर चुपचाप वहां से चले गए.
इस बात को हुए वर्षों बीत गए एक दिन राजा शिकार करते करते जंगल में आपने सैनिकों से बिछुड़ गया. तब उसने देखा की जंगल में एक झोपडी है और उसके आगे घोड़े की लीद का बहुत बड़ा ढेर पड़ा है. घोड़ों के शौक़ीन राजा ने जब यहाँ देखा तो सोचा की इतनी लीद है तो जरूर इस झोपडी में बहुत सारे घोड़े भी होंगे। वह झोपडी के अंदर गया लेकिन वहां सिर्फ एक साधू ध्यानं में लीन मिले। राजा ने पूछा घोड़े कहाँ हैं, साधू बोले- घोड़े तो नहीं हैं मेरे पास. राजा आश्चर्यचकित हुआ पूछा- तो इतनी लीद कहाँ से आयी आपके पास. साधू बोले- राजन, आपने मुझे पहचाना नहीं, ये तो मुझे आपने ही मुझे भीक्षा में दी थी.
राजा तो वर्षों पुरानी बात याद हुई, वह लज्जित हो गया लेकिन आश्चर्य से पूछा- महात्मन, मैंने तो थोड़ी सी ही लीद दी थी? साधू बोले- राजन, जो आप दूसरों को देते हैं वह बढ़कर आपको ही वापस मिलता है, वही वर्षों में बढ़कर इतना हो गया है. राजा को अपनी गलती का ज्ञान हुआ और वह साधू महाराज से प्रायश्चित का उपाय पूछने लगा. साधू बोले- राजन, जो आपने दिया है वो तो आपको मिलेगा ही. अतः आप कुछ ऐसा करें की लोग आपको भला बुरा कहें आपको गलियां दें.
राजा बड़ा दानी और प्रतापी था लाख कोशिश करने के बाद भी कोई राजा के बारे में गलत बोलने को तैयार न था. बहुत प्रयासों के बाद उसकी प्रजा उसकी बुराई करने लगाई तो लीद का ढेर भी काम होने लगा. अंत में थोड़ी से लीद बच गयी जो अथक प्रयासों पे भी ज्यों की त्यों बानी रही, तब साधू ने कहा- राजन, यह आपका मूल है जो दूसरे नहीं हर सकते, ये आपके गुरुदेव ही हर सकते हैं अतः आप आपने गुरु के साथ कुछ ऐसा करें की वो आपको भला बुरा कहें।
राजा अपने गुरु के सामने बहुत कु-प्रयत्न किये लेकिन ज्ञानी गुरु हमेशा उसको समझा के वापस भेज देते थे.
अंत में राजा को हार जान कर गुरु बोले- राजन, आप अपना गन्दा मुझे खिलने की कोशिश कर रहे हैं उसे तो आपको ही खाना पड़ेगा। जो आप दूसरों को देंगे उसका कई गुना आपको वापस मिलेगा। अच्छा देंगे कई गुना अच्छा मिलेगा, बुरा देंगे कई गुना बुरा वापस मिलेगा।
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