Tuesday, November 1, 2016

जो दोगे, उससे ज्यादा 'वही' मिलेगा

एक बड़े दानी राजा थे. वे प्रतिदिन एक निश्चित समय पे दान दिया करते थे. उन्हें घोड़ों का बड़ा शौक था. एक दिन वे दान की प्रक्रिया समाप्त कर शिकार को निकलने ही वाले थे की एक साधू जो दिन में एक ही व्यक्ति से सिर्फ एक बार ही भीक्षा लेते थे, राजा के सामने आ खड़े हुए और भीक्षा मांगने लगे।

राजा बोले दान का आज का समय तो समाप्त हो चूका है अतः आप कल आएं, लेकिन साधू बोले - राजन मैं दिन में सिर्फ एक बार ही भीक्षा मांगता हूँ अतः आप मुझे कुछ भी भेक्षा में देकर कृपा करें। साधू की हठधर्मिता देखकर राजा को गुस्सा आ गया और उन्होंने जिस घोड़े पे बैठ कर शिकार को जाने वाले थे उसकी लीद उठाकर साधु महाराज की झोली में डाल दी. साधू वो ग्रहण कर चुपचाप वहां से चले गए.

इस बात को हुए वर्षों बीत गए एक दिन राजा शिकार करते करते जंगल में आपने सैनिकों से बिछुड़ गया. तब उसने देखा की जंगल में एक झोपडी है और उसके आगे घोड़े की लीद का बहुत बड़ा ढेर पड़ा है. घोड़ों के शौक़ीन राजा ने जब यहाँ देखा तो सोचा की इतनी लीद है तो जरूर इस झोपडी में बहुत सारे घोड़े भी होंगे। वह झोपडी के अंदर गया लेकिन वहां सिर्फ एक साधू ध्यानं में लीन मिले। राजा ने पूछा घोड़े कहाँ हैं, साधू बोले- घोड़े तो नहीं हैं मेरे पास. राजा आश्चर्यचकित हुआ पूछा- तो इतनी लीद कहाँ से आयी आपके पास. साधू बोले- राजन, आपने मुझे पहचाना नहीं, ये तो मुझे आपने ही मुझे भीक्षा में दी थी.

राजा तो वर्षों पुरानी बात याद हुई, वह लज्जित हो गया लेकिन आश्चर्य से पूछा- महात्मन, मैंने तो थोड़ी सी ही लीद दी थी? साधू बोले- राजन, जो आप दूसरों को देते हैं वह बढ़कर आपको ही वापस मिलता है, वही वर्षों में बढ़कर इतना हो गया है. राजा को अपनी गलती का ज्ञान हुआ और वह साधू महाराज से प्रायश्चित का उपाय पूछने लगा. साधू बोले- राजन, जो आपने दिया है वो तो आपको मिलेगा ही. अतः आप कुछ ऐसा करें की लोग आपको भला बुरा कहें आपको गलियां दें.

राजा बड़ा दानी और प्रतापी था लाख कोशिश करने के बाद भी कोई राजा के बारे में गलत बोलने को तैयार न था. बहुत प्रयासों के बाद उसकी प्रजा उसकी बुराई करने लगाई तो लीद का ढेर भी काम होने लगा. अंत में थोड़ी से लीद बच गयी जो अथक प्रयासों पे भी ज्यों की त्यों बानी रही, तब साधू ने कहा- राजन, यह आपका मूल है जो दूसरे नहीं हर सकते, ये आपके गुरुदेव ही हर सकते हैं अतः आप आपने गुरु के साथ कुछ ऐसा करें की वो आपको भला बुरा कहें।

राजा अपने गुरु के सामने बहुत कु-प्रयत्न किये लेकिन ज्ञानी गुरु हमेशा उसको समझा के वापस भेज देते थे.

अंत में राजा को हार जान कर गुरु बोले- राजन, आप अपना गन्दा मुझे खिलने की कोशिश कर रहे हैं उसे तो आपको ही खाना पड़ेगा। जो आप दूसरों को देंगे उसका कई गुना आपको वापस मिलेगा। अच्छा देंगे कई गुना अच्छा मिलेगा, बुरा देंगे कई गुना बुरा वापस मिलेगा।

:)

Thursday, September 1, 2016

स्वाभाव

एक महात्मन एक दिन किसी नदी में स्नान कर रहे थे तभी उन्होंने देखा की एक बिछु नदी की धार में डुब रहा है. महात्मन को दया आयी और उन्होंने बिछु को बचने के लिए उसे अपनी हथेली पे उठाया और जैसे ही बाहर रेत पे रखने जा रहे थे की बिछु ने डंक मर दिया, महात्मन दर्द से बिलबिला गए और उनका हाथ हिलने से बिछु  फिर से जल में गिर गया. महात्मन पुनः बिछु को अपनी हथेली पे उठाया और बिछु के पुनः डंक मार दिया।

यह प्रक्रिया चलती रही तो साथ में स्नान करने वाले चेलों से रहा नहीं गया वो पूछ पड़े, 'गुरुदेव' आप व्यर्थ ही उस बिछु को बचने की चेस्टा कर रहे हैं वो आपको बार बार डंक मार दे रहा है.

महात्मन मुस्कुराये और बोले, डंक मरना बिछु का स्वाभाव है और दूसरों की सहायता करना मनुष्य का. जब यह जानवर होकर भी अपना स्वाभाव नहीं छोड़ रहा तो मैं एक महुष्य हूँ उससे श्रेष्ठ, अपना  स्वाभाव कैसे छोड़ दूँ।

और अंततः कई प्रयासों के बाद महात्मन बिछु को बचने में सफल हो ही गए.

जय हो !

डैडी हु इस दिस ब्लू गाए ?

प्रिय मित्र और भ्राता रितेश की ३ साल की छोटी बिटिया सोनम,  बचपन से स्कॉटलैंड में रह रही है तो भारतीय संस्कृति से ज्यादा परिचित नहीं थी.

दूरदर्शन पे एक दिन 'महादेव' नमक कार्यक्रम चल रहा था और उसमें शंकर जी को पूरा नीलवर्ण दिखाया गया था. हालाँकि विष पिने से शंकरजी का सिर्फ कंठ नीला हुआ था इसीलिए उनको नीलकंठ भी कहते हैं पर मूर्तिकार और चित्रकार अक्सर उन्हें पूरा ही नीला प्रदर्शित कर देते हैं.

खैर अचानक सोनम ने पूछा

'डैडी हु इस दिस ब्लू गाए ?'

लीजिये, दीजिये जवाब :)

आज भी यह बात छिड़ते ही सोनम झेंप जाती है :)

हा हा हा.........

पिताजी के तर्क - 1

प्रातःकाल मैया, बिटिया की तेल मालिश कर रही थी और मैं प्यार से उसे पुचकार रहा था। 'बेटू' आप थक गए हैं काम करते करते इसीलिए दादीजी आपकी मालिश कर रहे हैं, बहुत थक गए हैं? वदन दर्द दे रहा है?

पिताजी पास ही बैठे थे अनायास ही पूछ पड़े, अच्छा बताईये आप काम क्यों करते हैं ?
मैं उनके प्रश्न से उचकाया और यूँही बोला : पैसा कमाने के लिए ...
पिताजी: और धन अर्जन का मुख्य उद्देश्य क्या है ..
मैं : खुश रहना। ...
पिताजी(मंद मंद मुस्कुराते हुए) : हम्म्म्म। ... तो मुख्य उद्देश्य खुश रहना है, .. और वो काम ये छोटी अबोध बच्ची करती है, सबको खुश रखती है. जो भी कोई देखता है उसको खुश कर देती है. कितना काम करती है ये सोचिये, थक तो जाती ही होगी तो इसकी मालिश तो बहुत जरुरी है :)

और आज पुनः पिताजी के तर्क के आगे मैं निरुत्तर हो गया :)