Thursday, September 1, 2016

स्वाभाव

एक महात्मन एक दिन किसी नदी में स्नान कर रहे थे तभी उन्होंने देखा की एक बिछु नदी की धार में डुब रहा है. महात्मन को दया आयी और उन्होंने बिछु को बचने के लिए उसे अपनी हथेली पे उठाया और जैसे ही बाहर रेत पे रखने जा रहे थे की बिछु ने डंक मर दिया, महात्मन दर्द से बिलबिला गए और उनका हाथ हिलने से बिछु  फिर से जल में गिर गया. महात्मन पुनः बिछु को अपनी हथेली पे उठाया और बिछु के पुनः डंक मार दिया।

यह प्रक्रिया चलती रही तो साथ में स्नान करने वाले चेलों से रहा नहीं गया वो पूछ पड़े, 'गुरुदेव' आप व्यर्थ ही उस बिछु को बचने की चेस्टा कर रहे हैं वो आपको बार बार डंक मार दे रहा है.

महात्मन मुस्कुराये और बोले, डंक मरना बिछु का स्वाभाव है और दूसरों की सहायता करना मनुष्य का. जब यह जानवर होकर भी अपना स्वाभाव नहीं छोड़ रहा तो मैं एक महुष्य हूँ उससे श्रेष्ठ, अपना  स्वाभाव कैसे छोड़ दूँ।

और अंततः कई प्रयासों के बाद महात्मन बिछु को बचने में सफल हो ही गए.

जय हो !

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